परिषदीय स्कूलों के बच्चों को यूनीफॉर्म, स्वेटर, जूते-मोजे और स्कूल बैग बांटने की बजाय इन चीजों की रकम बच्चों के माता-पिता के बैंक खातों (डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर/डीबीटी) में भेजने की व्यवस्था को लागू करने में सरकार कोई जल्दबाजी नहीं करना चाहती है। शासन में उच्च स्तर पर यह आशंका जताई गई है कि यदि अभिभावकों ने बच्चों के लिए सामान नहीं खरीदे तो क्या होगा। लिहाजा यह योजना फिलहाल ठंडे बस्ते में जाने के आसार हैं।
परिषदीय विद्यालयों में कक्षा एक से आठ तक के बच्चों को सरकार हर शैक्षिक सत्र में मुफ्त में किताबें, यूनीफॉर्म, जूते-मोजे, स्कूल बैग और स्वेटर देती है। स्कूलों में बच्चों की संख्या ज्यादा दर्शाकर इन चीजों के वितरण की आड़ में भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी के आरोप लगते रहे हैं। दूसरी ओर, बच्चों को खराब गुणवत्ता के जूते-मोजे, यूनीफॉर्म और स्वेटर दिए जाने की शिकायतें भी मिलती रही हैं। इस पर लगाम कसने के लिए समग्र शिक्षा अभियान के राज्य परियोजना कार्यालय ने यूनीफॉर्म, जूते-मोजे, स्कूल बैग और स्वेटर की रकम बच्चों के अभिभावकों के बैंक खाते में सीधे भेजने का प्रस्ताव शासन को भेजा था। बीते दिनों शीर्ष स्तर पर हुई बैठक में यह आशंका जतायी गई थी कि यदि अभिभावकों ने खाते में भेजी गई रकम निकाल कर सामान नहीं खरीदे तब तो योजना पर ही पानी फिर जाएगा। इस संदर्भ में प्रधानमंत्री आवास योजना और स्वच्छ भारत मिशन का उदाहरण दिया गया जिनमें ऐसे मामले सामने आये हैं जहां लाभार्थियों ने मकान व शौचालय बनवाने के लिए दी गई रकम का कुछ और इस्तेमाल कर लिया।
हम हड़बड़ी में नहीं : मंत्री
बेसिक शिक्षा राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ.सतीश चंद्र द्विवेदी का कहना है कि यदि अभिभावकों ने खाते में भेजी गई रकम निकालकर बच्चों के लिए सामान नहीं खरीदा तो विभाग के लिए उनके खिलाफ दंडात्मक कार्यवाही करना व्यावहारिक नहीं होगा क्योंकि सरकार स्कूलों में नामांकन बढ़ाना चाहती है। । इसलिए डीबीटी योजना को लेकर विभाग किसी हड़बड़ी में नहीं है।