अलीगढ़: वैसे तो बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों में पढ़ाई से लेकर सुविधाओं तक में काफी बदलाव किया गया है, मगर ड्रेस का बजट आज भी दशक पुराना ही है। 2008 से ड्रेस वितरण की प्रक्रिया शुरू की गई थी, तब एक जोड़ी ड्रेस के लिए 200 रुपये मिलते थे। तब से आज तक 200 रुपये ही जारी होते आ रहे हैं। साल में हर बच्चे को दो जोड़ी ड्रेस देने के लिए 400 रुपये आवंटित होते हैं। गुणवत्तापरक ड्रेस बांटने की जिम्मेदारी शिक्षकों पर रखी जाती है। अब शिक्षकों ने गुणवत्ता की जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया है। उनका कहना है कि इतने सालों में एमडीएम की कंवर्जन कास्ट बढ़ना, पाठ्यक्रम बदलना, जूते-मोजे वितरण जैसे कई बदलाव हुए, मगर ड्रेस का बजट नहीं बढ़ा है।
उत्तर प्रदेशीय जूनियर हाईस्कूल शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष डॉ. प्रशांत शर्मा ने कहा कि सरकारों ने महंगाई बढ़ाकर कहां से कहां कर दी? मगर कपड़े की बढ़ती कीमत व महंगी सिलाई नहीं दिखती। उस पर भी गुणवत्ता का ढिंढोरा पीटा जाएगा। शिक्षक को दोषी मानकर कार्रवाई की जाएगी। चेतावनी दी कि ड्रेस के मामले में एक भी शिक्षक पर कार्रवाई हुई तो कार्य बहिष्कार कर आंदोलन किया जाएगा। जिले में 1776 प्राइमरी व 735 जूनियर हाईस्कूल समेत 2511 सरकारी स्कूल हैं। इनमें पढ़ने वाले लगभग 2.47 लाख बच्चों को डेस वितरण किया जाता है।
प्राइमरी-जूनियर एक समान1डॉ. प्रशांत ने कहा कि कक्षा एक से पांच तक के बच्चों के लिए 200 रुपये ही जारी होते हैं। कक्षा छह से आठ तक के बच्चों के लिए भी 200 रुपये जारी होते हैं। छोटे व बड़े बच्चों में कपड़ा ज्यादा लगेगा, मगर मिलेंगे 200 रुपये ही। शासन ही दोयम दर्जे के काम को बढ़ावा देता है।1यह सही है कि कई साल से एक डेस की कीमत 200 रुपये है, यह शासन स्तर का मामला है। इसका बढ़ना या घटना वहीं से तय होता है। डॉ. लक्ष्मीकांत पांडेय, बीएसए