परिषदीय स्कूलों के बच्चों के लिए शुरू की गई दूध वितरण योजना बजट के अभाव में दम तोड़ती जा रही है। शिक्षक स्वयं अपने खर्चें से स्कूलों में बच्चों को दूध पिला रहे हैं। शिक्षकों का लाखों रुपया बेसिक शिक्षा विभाग पर बकाया हो चुका है। बजट मिलने के बाद ही इसका भुगतान हो सकेगा। वहीं, बजट न होने के चलते कुछ स्कूलों में योजना बंद होने की कगार पर पहुंच चुकी है। बेसिक शिक्षा विभाग के प्राथमिक व उच्च प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों के स्वास्थ को देखते हुए तत्कालीन सरकार ने दूध वितरण योजना को शुरू किया था। योजना के अंतर्गत सभी स्कूलों में प्रत्येक बुधवार को बच्चों को पीने के लिए दूध दिया जाता है। इसमें मध्यान्ह् भोजन प्राधिकरण के बजट में से बच्चों के लिए दूध का खर्चा निकाला जाता है। लेकिन पिछले काफी समय से बजट के अभाव में दूध वितरण योजना दम तोड़ती जा रही है और शिक्षकों पर बच्चों को दूध पिलाने का पूरा दबाव बनाया जा रहा है। ऐसे में शिक्षक अपनी जेब से खर्चा कर बच्चों को स्कूलों में दूध वितरण करा रहे हैं। शिक्षकों की माने तो काफी समय से दूध वितरण के लिए भुगतान भी नहीं हुआ है। इस स्थिति में शिक्षक अपने खर्चें से बच्चों को कहां तक दूध पिलाएं ऐसे में वह काफी परेशान हैं। प्राथमिक शिक्षक वैलफेयर एसोसिएशन के प्रांतीय उपाध्यक्ष वेद प्रकाश गौतम का कहना है कि बजट के अभाव में शिक्षक काफी परेशान हैं। जो शिक्षक अपने खर्चें से बच्चों को दूध पिला रहे हैं उनका लाखों रुपया विभाग पर बकाया है।
बता दें कि परिषदीय स्कूलों में बच्चों को जो दूध दिया जाता है, उसका अलग से चार्ट बना हुआ है। इसमें जूनियर स्कूल के एक छात्र को 200 एमएल व प्राथमिक के छात्र को 150 एमएल दूध सप्ताह में प्रत्येक बुधवार को दिया जाता है। लेकिन इसमें भी पूरी तरह से बजट का टोटा रहता है। हालांकि विभागीय अफसर जल्द ही ग्रांट मिलने की बात कह रहे हैं।
बजट के अभाव में थोड़ी समस्या आ रही है। स्कूलों में शिक्षक दूध वितरण कराए और ग्रांट मिलते ही भुगतान कर दिया जाएगा। जिन स्कूलों में दूध वितरण नहीं हो रहा इसके बारे में खंड शिक्षा अधिकारियों से जानकारी ली जाएगी। शिक्षक बजट को लेकर बिल्कुल भी परेशान न हों। -अजीत कुमार, बीएसए