उत्तर प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन आयोग लखनऊ में फर्जी नियुक्ति का मामला प्रकाश में आया है। शासन ने 12 विभागों के 635 पदों पर भर्ती में अनियमितता की जांच विजिलेंस (सतर्कता अधिष्ठान) को सौंपी थी। जांच के दौरान पाया गया कि योग्य की जगह अयोग्य उम्मीदवारों का चयन कर लिया गया।
विजिलेंस की ओर से इस मामले में आयोग के तत्कालीन अनुभाग अधिकारी रामबाबू यादव, तत्कालीन प्रवर वर्ग सहायक अनिल कुमार, प्रवर वर्ग सहायक सतऊ प्रजापति, प्रवर वर्ग सहायक गोपन अनुभाग राजेंद्र प्रसाद, तत्कालीन सचिव महेश प्रसाद के खिलाफ मंगलवार को एफआइआर दर्ज कराई गई है। जिन चार लोगों के खिलाफ एफआइआर है, उन्हीं अधिकारियों ने उम्मीदवारों का साक्षात्कार भी लिया था। इसी क्रम में उम्मीदवार नूतन दीक्षित का साक्षात्कार 21 नवंबर 2015 को हुआ। आयोग द्वारा गठित साक्षात्कार बोर्ड ने बकायदा उनका साक्षात्कार लिया था।
एफआइआर में नामजद चारों अधिकारियों के संबंध में विजिलेंस की ओर से कहा गया है कि उन्हीं में से किसी एक ने नूतन दीक्षित के अभिलेखों का सत्यापन किया, लेकिन चारों अधिकारियों में से किसी एक ने भी अपनी ओर से यह स्पष्ट नहीं किया। नूतन दीक्षित ने साक्षात्कार में 49/100 अंक प्राप्त किये, जोकि अनारक्षित वर्ग की महिलाओं का अंतिम कटऑफ 45/100 अंक से अधिक है। नूतन दीक्षित का अंतिम चयन में नाम अवश्य होना चाहिये था, लेकिन आयोग द्वारा यह कहकर कि सीसीसी प्रमाण पत्र नहीं उपलब्ध कराये जाने के कारण अभ्यर्थी का चयन नहीं किया गया, आयोग का यह तर्क गलत और निराधार है। इससे स्पष्ट है कि आयोग के चारों अधिकारियों ने योग्य अभ्यर्थी का चयन न करके हानि पहुंचाई गई और अयोग्य व्यक्ति को चयनित करके उसे लाभ पहुंचाया गया।